किसी ने बड़े कमाल की बात कही है, कि भगवान् बोलते हैं- तू वही करता है, जो तू चाहता है... फिर वही होता है, जो मैं चाहता हूं… इसीलिए तू वही कर जो मैं चाहता हूं, फिर वही होगा जो तू चाहता है…
एक बार भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन राज्य में भ्रमण करने के लिए निकले हुए थे… दोनों की नजर पड़ी एक ब्राह्मण देव पर.. पंडित जी भिक्षा मांगने के लिए घर-घर जा रहे थे, और यह देखकर के अर्जुन को अच्छा नहीं लगा… उसे लगा कि पंडित अलग-अलग घरों में जा रहे हैं, जाकर दरवाजे पर भिक्षा मांग रहे हैं… तो अर्जुन को दया आ गई… उन्होंने पंडित जी को पास बुलाया और कहा कि- महाराज प्रणाम! आपके लिए मेरे पास में कुछ है... और सोने के सिक्कों की एक पोटली पंडित जी को दे दी... पंडित जी बड़े खुश हुए, की क्या बात है! भगवान के दोस्त ने इतनी बड़ी मदद कर दी... भगवान की कृपा है... पंडितजी ने भगवान को प्रणाम किया, अर्जुन को प्रणाम किया और उसके बाद में चल पड़े अपनी झोपड़ी की तरफ... वो बड़े खुश थे... उन्हें लगा की इतने सोने के सिक्के मिल गए, अब तो जीवन में खुशियां ही खुशियां होंगी.. लेकिन पंडित जी का दुर्भाग्य देखिए, कि रास्ते में एक लुटेरा मिला। और उसने वह सोने के सिक्कों की पोटली लूट ली... पंडित जी दुखी मन से अपनी झोपड़ी में पहुंचे। और जाकर अपनी पत्नी को सारी बात बताई। कि कैसे आज जिंदगी में खुशियां आई थी और छूमंतर हो गई... पत्नी को बड़ा बुरा लगा.. अगले दिन क्या करते? पंडित जी का काम था भिक्षा मांगने का, तो वो उसी काम के लिए निकल पड़े। उस दिन फिर से भगवान श्री कृष्णा और उनके दोस्त अर्जुन घूमने के लिए निकले हुए थे... उन्होंने देखा कि पंडित जी तो आज फिर भिक्षा मांग रहे हैं? अर्जुन ने ब्राह्मण देव को बुलाया और कहा कि ब्राह्मण देव नमस्कार! क्या हुआ आपको? मैंने तो आपको सोने के सिक्कों की पोटली दी थी... वह पोटली कहाँ गयी? पंडित जी ने सारी बात बताई- कल मेरे साथ बहुत बुरा हुआ... मेरा तो भाग्य अच्छा नहीं चल रहा है... अर्जुन को बहुत दया आई... अर्जुन ने कहा कि आप चिंता मत कीजिए! आपके लिए बहुत कीमती चीज मेरे पास है... एक बेशकीमती मोती! वह अनमोल मोती अर्जुन ने पंडित जी को दे दिया। और कहा कि से अपने पास रखना, आपकी जिंदगी बदल जाएगी। पंडित जी फिर से खुश हुए, भगवान को प्रणाम किया, अर्जुन को धन्यवाद किया, और कहा- कि धनुर्धर आप श्रेष्ठ हैं... आपसे श्रेष्ठ इस दुनिया में कोई नहीं है...
तारीफ करने के बाद में पंडित झोपड़ी की तरफ चल पड़े। वो बड़े खुश थे, कि क्या बात है! झोपड़ी में पहुंचे तो उन्होंने देखा, उनकी पत्नी पानी भरने के लिए नदी किनारे गई हुई थी... अब पंडित जी झोपड़ी में मोती को छिपाने की जगह ढूंढने लगे, ताकि उसे चोर की नज़रों से बचाया जा सके... पंडितजी के पास एक पुराना घड़ा था. उस मोती को घड़े में रखकर पंडित जी आराम करने के लिए चले गए... इसी बीच में पंडित जी की पत्नी, जो नदी किनारे गई हुई थी, वो बिना पानी लिए वापिस आ गयी... दुर्भाग्य देखिए, उसका घड़ा फुट गया था... उसने घर आके देखा, की वहां एक पुराना घड़ा रखा है... तो वो उस पुराने घड़े को लेकर के नदी किनारे गई... जैसे ही उन्होंने पुराना घड़ा नदी में डुबाया, मोती खिसककर के नदी में बह गया... वो पानी भर के जब वापस पहुंची झोपड़ी में तो पंडित जी बैठे हुए थे... उनका माथा ठनका हुआ था... बोले कि क्या कर दिया? वह पुराना घड़ा कहां लेकर के चली गई? तो पत्नी ने बताया कि पानी भरने गई थी, नया वाला घड़ा टूट गया था... पंडित जी ने कहा- तुमने सब तबाह कर दिया, सब खत्म कर दिया। आज मुझे धनुर्धर अर्जुन ने एक मोती दिया था.. बेशकीमती, अनमोल था वह... मैंने उसे पुराने घड़े में रखा था.. वह पुराना घड़ा तुम लेकर के गई और वह पानी के साथ में बह गया... सब कुछ खत्म हो गया... पंडित जी अगले दिन से फिर से भिक्षा मांगने चले गए... दो-तीन दिन के बाद एक बार फिर से भगवान श्री कृष्णा और उनके मित्र अर्जुन घूमने के लिए निकले हुए थे... नजर पड़ी तो पंडित जी दिखाई दिए... अर्जुन ने बोला कि क्या चल रहा है? ब्राह्मण देव क्या हुआ? आपको जो मोती दिया था उसका क्या हुआ? तो ब्राह्मण देव ने कहा- क्या बताऊं महाराज! मेरा तो दुर्भाग्य चल रहा है... मेरी पत्नी वह पुराना घड़ा, जिसमें मैंने मोती रखा था उसे लेकर के नदी किनारे गई, और मोती बह गए... ऐसे में भगवान की तरफ अर्जुन ने देखा और कहा कि मदद कीजिए।
भगवान श्री कृष्ण ने अपने पास से दो पैसे के दो सिक्के निकाल के पंडित जी को दिया, और कहा कि एक काम कीजिएगा। अब आप आगे नहीं, बल्कि पीछे जाइएगा... जिस रास्ते से आप आए थे, उसी रास्ते पर वापस जाइए।अपनी झोपड़ी में जाइए, सब ठीक हो जाएगा। पंडित जी ने दो सिक्के लिए और चल पड़े वापस। वो सोचने लगे कि भगवान के दोस्त अच्छे हैं, जिन्होंने कितनी बार मुझे दान दे दिया। इतनी बड़ी-बड़ी मदद कर दी, और भगवान ने सिर्फ दो सिक्के दिए? इससे क्या होगा मेरी जिंदगी का? पंडित जी यही सब सोचते हुए जा रहे थे, तभी नदी किनारे से एक मछुआरा आ रहा था... उसके जाल में एक मछली बहुत ही सुंदर सी मछली फंसी हुई थी... उसे पंडित जी ने देखा तो उन्हें उसे मछली पर तरस आ गया... उन्हें लगा कि दो पैसे मेरे तो कोई काम आएंगे नहीं, इससे किसी की जान बचा लेता हूं... तो वह दो सिक्के जो थे, वह मछुआरे को दिए और कहा- कि इसको मछली को आजाद कर दो... मछली आज़ाद करवा कर पंडितजी ने मछली अपने कमंडल में डाल ली...
बाद में पंडितजी ने सोचा की नदी किनारे जाता हूं, जाकर इस मछली को आज़ाद कर देता हूं... वो नदी किनारे पहुंचे और मछली को उस कमंडल से निकलकर के नदी में प्रवाहित करने ही वाले थे, तभी उनकी नजर अपने कमंडल में पड़ी... वहां उन्हें एक मोती दिखाई दिया। ये वही मोती था, जो अर्जुन ने दिया था... इसे मछली ने खा लिया था... वह मछली घूम फिर के पंडित जी के पास आ गई थी... पंडित जी खुशी के मारे चिल्लाने लगे, कि मिल गया, मिल गया, मिल गया.... और जब वो चिल्ला रहे थे तभी वह लुटेरा वहां से किस्मत से गुजर रहा था, जिसने सोने के सिक्के लूटे थे...
लुटेरे ने देखा की की पंडित जी, मिल गया- मिल गया चिल्ला रहे हैं, तो लुटेरे को लगा कि शायद पंडित जी ने पहचान लिया। और अबकी बार तो मुझे सजा दिलवा के रहेंगे। लुटेरा दौड़ के आया और पंडित जी के चरणों में गिर गया... उसने कहा- महाराज मुझे माफ कीजिए। यह सोने के सिक्के आप रखिए, सारी पोटली आप रखिए। बस मुझे माफ कीजिए। मुझे सजा मत दिलवाइये। पंडित जी के चरणों में वह लुटेरा आ चुका था, सोने के सिक्कों की पोटली उनके हाथ में आ चुकी थी, मोती उनके हाथ में पहले से था... सब कुछ अच्छा हो गया था... अर्जुन ने जब यह देखा, तो भगवान श्री कृष्ण से नतमस्तक होकर कहा- हे भगवान! यह कौन सी लीला है? भगवान आपने क्या कर दिया? मैंने उसे पंडित की मदद की, उसको सोने के सिक्कों की पोटली दी, बेशकीमती मोती दिया। तब कुछ नहीं हुआ और अभी आपने सिर्फ दो सिक्के दिए और सारा खेल पलट गया?
भगवान श्री कृष्ण ने कहा- अर्जुन! मेरे सखा, सारा खेल- सारी लीला कर्मों की है... सोच की है... तुमने जब उस पंडित को सोने के सिक्कों की पोटली दी, तो पंडित अपने बारे में सोचने लगा... फिर तुमने उसे मोती दिया, तो फिर से अपने बारे में सोचने लगा... आज जब मैंने उसे दो सिक्के दिए, तो दो सिक्कों से मछली की जान बचाने का सोचने लगा... और जहां उसने किसी और के बारे में अच्छा करने का सोचा, वही उसकी जिंदगी में चमत्कार हो गया...
भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन की यह कहानी बहुत बड़ी बात सिखाती है. जिंदगी में अच्छे कर्म अपने आप आपके पास अच्छे फल लेकर के आते हैं... इसलिए अगर कभी मौका मिले, तो किसी की मदद जरूर कीजिएगा। सच्चे दिल से की हुई मदद लौट के दुआ के रूप में आती है....आपने देखा होगा बहुत बड़े-बड़े हादसे सिर्फ कुछ सेकंड से टल जाते हैं, क्योंकि सामने वाले का कर्म अच्छा होता है. जो उसे बचा ले जाता है... इसलिए अच्छे काम कीजिये, और अपने साथ में हमेशा दुआएं रखिए। क्योंकि पैसा कमाना आसान है, दुआएं कमाना बहुत मुश्किल है... जिसके पास दुआएं होती हैं जिसके पास ऊपर वाले का आशीर्वाद होता है... नीचे वाले उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।